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Dheerja Sharma

Abstract

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Dheerja Sharma

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भू स्खलन

भू स्खलन

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गुस्से में हैं पहाड़!

बहुत गुस्से में हैं पहाड़ !

उन्हें अब बहती नदियां

दिखाई नहीं देती।

उन्हें झरनों की रागिनी

सुनाई नहीं देती।

पंछियों के संगीत को

क्या हो गया है

वाहनों की लंबी लंबी कतारों के

शोर में कहीं खो गया है।

होटलों की बहुमंज़िला इमारतों का

बोझ छाती पे सहा नहीं जाता

दम घुट रहा है हमारा

पहाड़ों से कहा नहीं जाता।

इस लिए गुस्से में पहाड़

बिफर रहे हैं।

फट रहे, टूट रहे

बिखर रहे हैं।



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