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Dheerja Sharma

Abstract

4.9  

Dheerja Sharma

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दर्जी हूँ

दर्जी हूँ

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दर्ज़ी हूँ मैं... 

रुमाल से रसोई तक 

रिश्तों से नातों तक

 सब दुरुस्त रखती हूँ।। 

उधड़ने लगते हैं जब रिश्ते

 स्नेह-धागे से सिल कर

 फिर सही कर देती हूँ।। 


रफूगर भी हूँ.... 

अपनों के मन पर लगी 

खरोंचों को कर देती हूँ रफू

 सफ़ाई से।। 

ज़्यादा फट जाए तो 

लगा देती हूँ पैबंद क्षमा का

और बचा लेती हूं रिश्ता।। 


बटन और बच्चों का आत्मविश्वास 

कुछ ढीला नहीं होने देती

टाँकती रहती हूँ उन्हें मज़बूत डोर से।।

उधड़ने लगता है जब दाम्पत्य

तो कर देती हूँ पक्की सिलाई

प्यार और विश्वास के धागे से।। 


बेटी हूँ,पत्नी और माँ हूँ 

स्री हू...रफूगर हूँ.....दर्ज़ी हूँ

 कुछ भी फटने, उधड़ने नहीं देती।। 


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