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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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ठंड का मौसम

ठंड का मौसम

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ठिठुरता जीवन 

काँपता बदन

हवाओं की सरसराहट

पछुआ की आहट

चिथड़े में लिपटे

प्लास्टिक की तंबू ताने


या फिर स्टेशन के किसी कोने में पड़े

पैर पेट में घुसाये, 

दिन के इंतजार में

उनसे पूछो कैसा होता है ये ठंड का मौसम ।


कोहरे के चादर में लिपटे दिन में

सूरज की ताप के इंतजार में

दिहाड़ी पर निकले मजदूर

भीषण ठंड के बीच में

खुले आकाश तले 


दो रोटी के जुगाड़ में लगे हुए

कभी पीठ पर बोरी को लादे

कभी सिर पर ईंट ढोते

बर्फ की तरह जमते हाथ पाँव के साथ

उनसे पूछो ये ठंड क्या 

कहर ढाता है।


उम्र के ढलान पर पहुँचा बुजुर्ग

हड्डियों में नही दम खम

और नही शरीर में मांस

जीर्ण शीर्ण सी काया 

और शक्ति सामर्थ्य का होना नगण्य।

साँसों का तीव्रतम चलना

कभी खाँसी से साँसों का उखड़ना,

शरीर में गर्मी का नहीं कोई 

होता है आभास।


बस खुद को लिपटे हुए ठंड के कहर

से बचने की नाकाम कोशिश

उनसे पूछो ये ठंड कितना

जुल्म कर जाता है।


नन्हे दुधमुँहे बच्चे की माँ की फिक्र

सुविधाओं का अभाव

और जरूरतों की लंबी फेहरिस्त

क्या पहनाए क्या ओढाये

इस फिक्र से हलकान होता

सदा ही मन।


आखिर कब तक मुट्ठी भर धूप

की आस में बोरसी(पात्र)

में आग रख काटेगी

दिन और ये भयावह रात।

उनसे पूछो ये ठंड का सितम

कितने मुश्किल से बर्दाश्त किया जाता है।


ठंड का मौसम उनके लिए बेहतर

जो कमरे पर उच्च तापमान में

ओवरकोट मफलर दस्ताने मोजे से लैस

लिहाफ में घुसे 

जिंदगी का आनंद उठाते है।


उन्हें नहीं फिक्र होती 

खेतो में फसल सुरक्षित है या नही।

या फिर बच्चों के शरीर पर के कपड़े

गीले तो नहीं।

सही मायनों में यह जाड़े के मौसम

सुविधासंपन्न लोगों के लिए ही है।


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