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Gurudeen Verma

Abstract

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Gurudeen Verma

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जहाँ कभी बहता था अमृत

जहाँ कभी बहता था अमृत

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जहाँ कभी बहता था अमृत, वहाँ जाम लबों पे चढ़ गया।

वह चौराहा जहाँ थी हवा प्रेम की, मैदाने-जंग अब हो गया।।

पड़ौस के वो घर, जिनमें कर जाता था मैं प्रवेश बिना पूछे।

लगता है डर अब उनसे मिलने में, शक जो मुझ पर हो गया।।

जहाँ कभी बहता था अमृत------।।


विस्तृत वह सागर, जिसमें नहाया करता था दिन में चार बार।

अब बरसात में भी नहीं मिलता उसमें जल , निर्जल वह हो गया।।

वो राहें जिनमें निकलता था मैं, बिना किसी से टकराये।

हो गई वो संकरी गलियां, पहाड़ जनसंख्या का वहाँ जो बन गया।।

जहाँ कभी बहता था अमृत-------।।


सिर्फ एक नलकूप था, जो बुझाता था प्यास पूरे गांव की।

अब तो लगते हैं कम सात भी,शायद रुसवां नीर हो गया।।

जहाँ मिलती थी तस्वीर हर घर में, तहजीबे- हिंदुस्तान की।

अब होती है पूजा खूबसूरत चेहरों की, विदेशी असर जो हो गया।।

जहाँ कभी बहता था अमृत-------।।


देखी थी लड़ाइयां बड़ी बड़ी मगर, घर किसी का नहीं जला था।

अब होते हैं धमाके बारूद के, हर दिमाग बम जो बन गया।।

खेले जाते थे जहाँ नाटक कभी, महापुरुषों की कहानियों पर।

खेला जाता है वहाँ अब रोज जुहा , मनोरंजन यही वहाँ हो गया।।

जहाँ कभी बहता था अमृत--------।।


नहीं रही अब वो जुबानें यारों की, जो हुआ करती थी बचपन में।

ढूंढता हूँ वह चेहरा अब चिराग लेकर, मालूम नहीं कहाँ गुम हो गया।।

बदल गई सूरत और हवा अब गांव की, जिसको चाहता था कभी बहुत।

जाता हूँ अब वर्षों में मेरे गाँव, मेरा गाँव जो इतना बदल गया।।

जहाँ कभी बहता था अमृत--------।।


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