फंसा है कोई
फंसा है कोई
मक्खन लगाकर रोटी में फिर भी चूहा फँसा ना सकी
तिरछी नजरों से जो देखा उसको
फँसा गया वो सखी
वह मुस्कुराया मैं मुस्कुराई
मन ही मन मैं भी मुस्काई
फिर जो चला मिलने मिलाने का वह दौर
कोई भी त्यौहार बचा ना भाई।
मक्खन लगा कर ---------
जन्मदिन जो आया मेरा खुश खुश मैं हो गई।
खास दिन का खास दोस्त का इंतजार रहता था सखी
अब जब भी जन्मदिन आता उपहार की होती बौछार।
दोस्त से ज्यादा उपहार भली लागे
उससे बची ना सखी।
दिन बीते साल बीते बीता हर पल हर क्षण
अब कुछ भी ना अच्छा लगे सब लागे बेकार ।
मक्खन लगाकर रोटी में--------
इस महामारी ने सब लुटा।
फोन में ही बातें करके मन को मैं समझाई ।
फोन में ही चेहरा देखकर मन मार कर रह जाऊं ।
छटपट छटपट दिन बीत रहा ।
करवट करवट रात ।
बीत रही हर क्षण हर पल
अब कुछ भी ना अच्छा लगे ।उदास सा लागे अब यह जीवन ।
मक्खन लगाकर रोटी में------
समझ समझ कर अब कितना समझूं।
समझदार भी समझ कर लुट गया भाई।
एक सूरज एक चांद जैसे है
वह हम सफर मेरा
अब तो यह आलम है प्यार भी करूं लड़ाई झगड़े से
रोकर और चिल्ला कर हंसकर
और चिढ़कर भी ।
ऐसे ही बीत रहा सखी दिन भर
मक्खन लगाकर रोटी में-------------
अब तो जब मर्जी तब उठूं
जब मर्जी तब जागूं
सो सो कर खा खा कर और भी मोटी हो जाऊं ।
जब भी जागो सबकी खबर लेती रहो सखी।
अब कुछ भी ना अच्छा लागे ।
सब खबर सुनकर दिल मेरा घबराए ।
मेरे घबराए मन को कोई नहीं है समझाए ।
ज्ञान की बातें अब न अच्छा लगे ।
बस परमात्मा है दिल में वही हमे समझाए।
मक्खन लगाकर रोटी में-----------
हार कर थक कर मौन हो जाऊं
घर में सब देख कर डर जाए
क्या हुआ क्या हुआ कह कर मुझको और गुस्सा दिलाए ।
चलो छोड़ो ऐसी बातें जो हो रहा है
जो होगा अच्छा ही होगा
ऐसे ही सोच कर दिन बीत रहा
रात भी बीत रही हे नाथ जीवन ऐसे ही गुजर जाए बस।
मांगू मैं उस रब से एक ही दुआ।
सबकी सुनो हे नाथ ।पूरी करो भी हे नाथ।।
