STORYMIRROR

Sandhaya Choudhury

Abstract

4  

Sandhaya Choudhury

Abstract

फंसा है कोई

फंसा है कोई

2 mins
341


मक्खन लगाकर रोटी में फिर भी चूहा फँसा ना सकी

तिरछी नजरों से जो देखा उसको 

फँसा गया वो सखी 

वह मुस्कुराया मैं मुस्कुराई

 मन ही मन मैं भी मुस्काई

 फिर जो चला मिलने मिलाने का वह दौर 

कोई भी त्यौहार बचा ना भाई।

मक्खन लगा कर ---------

जन्मदिन जो आया मेरा खुश खुश मैं हो गई।

खास दिन का खास दोस्त का इंतजार रहता था सखी

अब जब भी जन्मदिन आता उपहार की होती बौछार।

 दोस्त से ज्यादा उपहार भली लागे 

उससे बची ना सखी।

 दिन बीते साल बीते बीता हर पल हर क्षण

अब कुछ भी ना अच्छा लगे सब लागे बेकार ।

मक्खन लगाकर रोटी में--------

इस महामारी ने सब लुटा।

फोन में ही बातें करके मन को मैं समझाई ।

फोन में ही चेहरा देखकर मन मार कर रह जाऊं ।

छटपट छटपट दिन बीत रहा ।

करवट करवट रात ।

बीत रही हर क्षण हर पल 

अब कुछ भी ना अच्छा लगे ।उदास सा लागे अब यह जीवन ।

मक्खन लगाकर रोटी में------

 समझ समझ कर अब कितना समझूं।

 समझदार भी समझ कर लुट गया भाई।

 एक सूरज एक चांद जैसे है 

वह हम सफर मेरा 

अब तो यह आलम है प्यार भी करूं लड़ाई झगड़े से 

रोकर और चिल्ला कर हंसकर 

और चिढ़कर भी ।

ऐसे ही बीत रहा सखी दिन भर

 मक्खन लगाकर रोटी में-------------

 अब तो जब मर्जी तब उठूं 

जब मर्जी तब जागूं 

सो सो कर खा खा कर और भी मोटी हो जाऊं ।

जब भी जागो सबकी खबर लेती रहो सखी।

अब कुछ भी ना अच्छा लागे ।

सब खबर सुनकर दिल मेरा घबराए ।

मेरे घबराए मन को कोई नहीं है समझाए ।

ज्ञान की बातें अब न अच्छा लगे ।

 बस परमात्मा है दिल में वही हमे समझाए।

मक्खन लगाकर रोटी में-----------

 हार कर थक कर मौन हो जाऊं

 घर में सब देख कर डर जाए 

क्या हुआ क्या हुआ कह कर मुझको और गुस्सा दिलाए ।

चलो छोड़ो ऐसी बातें जो हो रहा है 

जो होगा अच्छा ही होगा 

ऐसे ही सोच कर दिन बीत रहा 

रात भी बीत रही हे नाथ जीवन ऐसे ही गुजर जाए बस।

मांगू मैं उस रब से एक ही दुआ।

 सबकी सुनो हे नाथ ।पूरी करो भी हे नाथ।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract