कैसे खेलूं होली
कैसे खेलूं होली
होली से पहले गद्दारों ने कर दी खून की होली रे
किसी का पति था भाई था बेटा था इकलौता
अब किसके संग खेलूँ इस बार की होली की रे
कैसे खेलूं सखी संग पिया नहीं इस बार की होली रे।
झुंझलाकर माँ को पुकारा बन गई कि वह पत्थर की बुत रे
भाई की फोटो छाती से चिपकाकर बन गई थी वह लाश रे
बहना बोली किसको बांधूंगी राखी
सूरज के समान देश था ऐसा था मेरा भाई रे
वह सूरज डूब गया अम्मा कैसे मनाऊंगी रक्षाबंधन रे
कैसे खेलूं पिया संग होली रे
सूना आंगन सूनी गलियां सूनी मांग
सुना पड़ा यह मन का आंगन
बोल कर गया था इस बार होली में आऊंगा प्रिय
पर अब ना आएगा पता है मुझको फिर भी मन क्यों ना माने रे
बोल सखी कैसे खेलूं इस बार होली रे
चूड़ियों की खनक और पायल की झंकार से गूंजती घर की दीवारें
अब गूंजती है रह-रहकर सिसकियां और गूंजती है सन्नाटों की साए साए
ऐसे में बोल सखी कैसे खेलूं इस बार की होली रे।।