Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Sandhaya Choudhury

Tragedy

3  

Sandhaya Choudhury

Tragedy

कैसे खेलूं होली

कैसे खेलूं होली

1 min
170


होली से पहले गद्दारों ने कर दी खून की होली रे

किसी का पति था भाई था बेटा था इकलौता

अब किसके संग खेलूँ इस बार की होली की रे

कैसे खेलूं सखी संग पिया नहीं इस बार की होली रे।

झुंझलाकर माँ को पुकारा बन गई कि वह पत्थर की बुत रे

भाई की फोटो छाती से चिपकाकर बन गई थी वह लाश रे

बहना बोली किसको बांधूंगी राखी

सूरज के समान देश था ऐसा था मेरा भाई रे

वह सूरज डूब गया अम्मा कैसे मनाऊंगी रक्षाबंधन रे

कैसे खेलूं पिया संग होली रे

सूना आंगन सूनी गलियां सूनी मांग

सुना पड़ा यह मन का आंगन

बोल कर गया था इस बार होली में आऊंगा प्रिय

पर अब ना आएगा पता है मुझको फिर भी मन क्यों ना माने रे

बोल सखी कैसे खेलूं इस बार होली रे

चूड़ियों की खनक और पायल की झंकार से गूंजती घर की दीवारें

अब गूंजती है रह-रहकर सिसकियां और गूंजती है सन्नाटों की साए साए

ऐसे में बोल सखी कैसे खेलूं इस बार की होली रे।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy