अपने कदमों से नोचता रहता है वो मिट्टी जिसने थामा है उसे। अपने कदमों से नोचता रहता है वो मिट्टी जिसने थामा है उसे।
आश्रयस्थल होकर भी वीरान हूं ! यही मेरी नियति है ! आश्रयस्थल होकर भी वीरान हूं ! यही मेरी नियति है !
आयेगा जलजला तुझ पर जमाने समर जाने के बाद आयेगा जलजला तुझ पर जमाने समर जाने के बाद
नए भवन के लिए पुराने खण्डहर ढाए जाते ढाए खण्डहर की छाती पर ही पुनः नए उठाये जाते। नए भवन के लिए पुराने खण्डहर ढाए जाते ढाए खण्डहर की छाती पर ही पुनः नए उठाये ज...
वापस जाने को कभी मन नहीं करता अनजाने डर से छाती कांप उठती। वापस जाने को कभी मन नहीं करता अनजाने डर से छाती कांप उठती।
बहा लहू है देश का, कैसे कोई आराम करे। बहा लहू है देश का, कैसे कोई आराम करे।