आश्रयस्थल होकर भी वीरान हूं ! यही मेरी नियति है ! आश्रयस्थल होकर भी वीरान हूं ! यही मेरी नियति है !
चलो संभाल लेते है इस सृष्टि हो चलते हैं सफर पर मानवता के रथ पर। चलो संभाल लेते है इस सृष्टि हो चलते हैं सफर पर मानवता के रथ पर।