श्मशान
श्मशान
सोचता हूं -
मेरी नियति क्या है ?
मेरा नाम लेना भी लोग
समझते हैं अपशकुन !
कितनी धधकती चिताओं को
झेला है मैंने अपनी छाती पर
कितने -
पवित्रों-अपवित्रों
अच्छों-बुरों को
अपने हृदय से लगाया
फिर भी हुआ मैं
अपयश का भागी
क्यों ?
क्या इसलिए कि -
मैं श्मशान हूं ?
वो प्रियजन
वो आत्मीय
जो -
एक प्राण
एक हृदय
होने का दावा करते हैं
वे ही अपने उस -
प्रियजन और आत्मीय को
मुझे सौंप जाते हैं अकेला
क्या हो जाता है -
उनका वो दावा !
बड़ी बेरहमी से
मेरी छाती पर सजाकर
धधकती चिता में -
फूंक जाते हैं !
यूं ही जलता हुआ छोड़ जाते हैं !
तब -
मैं ही तो उन्हें अपनाता हूं
अपने में समाहित -
कर लेता हूं
वे ही -
मेरे नाम से भी डर जाते हैं
जब -
मेरी छाती को
अपने पैरों तले रौंदते हुए
मुझे मनहूस समझकर
शीघ्र ही उस प्रिय से
अलविदा कह देते हैं !
वे यह भूल जाते हैं कि
उन्हें भी -
उनके अपने ही
यूं ही निसहाय अकेला
सौंप जाएंगे मुझे
इसी तरह -
मेरी छाती पर
चिता में फूंक जाएंगे !
और फिर
और फिर
और फिर
उन -
मुझसे डरने वालों को
मुझे अपशकुनी
मानने वालों को भी
मैं ही तो
अपने आंचल में समेटूंगा
समेटता आया हूं अनादिकाल से
फिर भी हूं मैं -
अपयश का भागी
क्यों किसलिए ?
इसलिए कि -
मैं श्मशान हूं !
आश्रयस्थल होकर भी वीरान हूं !
यही मेरी नियति है !
