यही इल्तिजा है !
यही इल्तिजा है !
ये सूखे पत्ते
आते हैं
जब पैरों के नीचे
चरमराते हुए कहते हैं मुझसे
हम भी थे कभी हरे-भरे
थी रवानी हम पर भी
इस तरह न रोंदो हमको !
माना कि
आज हम खड़े हैं
जिन्दगी के आखिरी कगार पर
फिर भी जान तो है
तमन्ना भी रखते हैं जीने की
बस यही इल्तिजा है
हमको भी जीने दो
यूं तो न रोंदो हमको !