कवि का जन्म हुआ उस घर में
कवि का जन्म हुआ उस घर में
चिर दुविधाओं की धरती पर,
कातरता की नींव जमीं थी।
कुंठाओं की चारदीवारी,
पर विषाद की रेह नमी थी।
सर्प घूमते मुक्त हृदय से,
मनुज छिपे थे भीत-विवर में।
कवि का जन्म हुआ उस घर में।
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असमंजस के चौराहे पर,
किस्मत वाली बंद गली थी।
वहीं अभावों के आंगन में,
अभिशापों की देह पली थी।
उपवासों की परंपरा थी,
त्यौहारों के शुभ अवसर में।
कवि का जन्म हुआ उस घर में।
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चलता समय बताने वाली,
कमरे में रुक चुकी घड़ी थी।
सपनों का आकाश दिखाने,
वाली खिड़की बंद पड़ी थी।
कर्मो के बदरंग रंगों से,
रंगे हुए दीवारो-दर में।
कवि का जन्म हुआ उस घर में।