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KARAN KOVIND

Abstract Classics Inspirational

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KARAN KOVIND

Abstract Classics Inspirational

अब मैं केवल खुद में हूं

अब मैं केवल खुद में हूं

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एक सूखे पेड़ की तरह

मेरे भी पत्ते झड़ चुके

अब केवल एक ठूंठ हूं।

जिसे काट कर नक्काशियां कि जायेगी


एक सूने जंगल कि तरह 

मेरी भी बस्तियां उजड़ चुकी है।

अब मैं केवल बंजर हूं।

जहां अब राकेट परिक्षण किया जायेगा


एक अंनत समुद्र कि तरह 

मेरी भी लम्बी - चौड़ी नदी थी अब सूख चुकी है

अब मै केवल जर्जर हूं।

अब मुझमें रेगिस्तान उपजेगा


एक सीपी के घोंघे कि तरह 

मेरी भी परत खुली नहीं है

और मुझे कोई खोलता नहीं

जिससे मेरी कमर पर बहुत सवाल दबे है


एक नागरिक कि तरह 

मेरी भी दो चार-गज जमीनें है।

अब मैं केवल खुद में हूं

क्योंकि यहां खुद में रहो और चुप रहो तो बेहतर है।


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