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KARAN KOVIND

Tragedy

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KARAN KOVIND

Tragedy

जब जब मैंने उसको देखा

जब जब मैंने उसको देखा

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जब जब उसको मैंने देखा 

तो कुछ कुछ ऐसा देखा

जैसे देखता कोई किसी

को पहली बार उसके चलने

से मेरे अंदर धमक उठ रही थी

मनो मेरे छाती पर कोई दौड़ 

रहा हो नंगे पैर


जब जब उसको मैंने सुना

तो कुछ कुछ ऐसा सुना 

जैसे सुनता है कोई सुरीला

संगीत उसके बोलने की 

लय से उसके मुस्कुराने का

अंदाज मैंने सब देखा


जब जब वह हंसी

तो मनो ऐसी हंसी की 

जैसे हंसता है कोई 

जलधर-कच्छप-समेत

उसको देखने सुनने 

और हंसने से लेकर उसके 

जाने तक मैं खुश था जैसे 

चांद को देखता हुआ बच्चा 


लेकिन जब वह गयी 

तो ऐसे गयी जैसे जाता है 

कोई लेकर निष्प्रभ-प्राण

उसके जाने मेरे अंदर 

के सारे पत्ते झड़ गये

और मै एक पुराना 

ठूंठ बनकर रह गया।



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