STORYMIRROR

KARAN KOVIND

Tragedy

4  

KARAN KOVIND

Tragedy

जब जब मैंने उसको देखा

जब जब मैंने उसको देखा

1 min
369


जब जब उसको मैंने देखा 

तो कुछ कुछ ऐसा देखा

जैसे देखता कोई किसी

को पहली बार उसके चलने

से मेरे अंदर धमक उठ रही थी

मनो मेरे छाती पर कोई दौड़ 

रहा हो नंगे पैर


जब जब उसको मैंने सुना

तो कुछ कुछ ऐसा सुना 

जैसे सुनता है कोई सुरीला

संगीत उसके बोलने की 

लय से उसके मुस्कुराने का

अंदाज मैंने सब देखा


जब जब वह हंसी

तो मनो ऐसी हंसी की 

जैसे हंसता है कोई 

जलधर-कच्छप-समेत

उसको देखने सुनने 

और हंसने से लेकर उसके 

जाने तक मैं खुश था जैसे 

चांद को देखता हुआ बच्चा 


लेकिन जब वह गयी 

तो ऐसे गयी जैसे जाता है 

कोई लेकर निष्प्रभ-प्राण

उसके जाने मेरे अंदर 

के सारे पत्ते झड़ गये

और मै एक पुराना 

ठूंठ बनकर रह गया।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy