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KARAN KOVIND

Classics

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KARAN KOVIND

Classics

शंकुतला भाग १

शंकुतला भाग १

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पात्र परिचय

पुरूष


दुष्यंत ( हस्तिनापुर के राजा नायक)

मुनि कण्व ( संकुतला के मुंह बोले पिता)

सूत्रधार ( नाटक का शास्त्रीय आयोजक)

भरत ( शंकुतला दुष्यंत पुत्र)

गालव ( दुष्यंत का मित्र)

कश्यप 


नारी


नटी ( सूत्रधार की पत्नी)

शंकुतला (नायिका)

प्रयदंबना,आनसूया,सानुमति अप्सरा शंकुतला की सखी

गौतमी ( सन्यांसनी)

वसुमति ( दुष्यंत कि पत्नी)

वेत्रवती ,प्रतिहारी( द्वारपालनी)

सूव्रता ( अन्य पूर्ती)

अदिती ( कश्यप मुनि की पत्नी)


गीत 

सूत्रधार


रात चांदनी चमक रही है अंबर मे

ग्रीष्म वेला फैली है सम्पूर्ण जगत में

क्या मधुर ठंडी प्रवाह का होता चलन

देख मोहक चांदनी को मन हर्षे सावन मे

आओ प्रिये इस शांत शलय मे गाएं मधुर संगीत


कितना मोहक दृश्य है कितना ठंडा पवन

शाम को चलती प्रवाह है गाती मृदु-गीत

कुंजो की वलय से खींच लाती है मनोहर

सुगंधो का संदेश और फिर आह सा भरता ये तन


आओ प्रिये इस रागिनी में गाएं मधुर संगीत


क्या कहूं प्रिये मैं इस वेला का मारा हूं 

जहां उतारता चांद है ये धरा अतिप्यारा है

गतिमय छंद यह गीत है गाती लताओं कि आड़ में

मन में जगती एक अबुझ प्रेम का गीत

आओ प्रियेश गाएं यह मधुर संगीत


जीवन लीला यह अविस्मरणीय गान मनोहर

उत्साह सी रात सजे बजे वीणा के रूनझुन तार

संकुतला का प्रणयगान हो जागे मन में शीतलक प्रीत

आओ प्रिये इस शुभ अवसर पर गाएं मधुर संगीत


इन सुशोभित सुष्माओ में प्रेम प्रसंग का गान करे दीपित ज्वालाओ का प्रतिपल उत्पल विस्तार करे

यह दीपित जो मलाये दुग्ध सी दमक रही है

कुछ लोहित प्रकाश को जानती सी लग रही है

आओ प्रिये इस शुभ अवसर पर गाएं मधुर संगीत


कर रही और भी उत्फुल्ल अपने प्रकाश को

कर रही अभिनंदन इस प्रणय के गान को

जानते हैं ,भूमि वायु और यह मधुरिम आकाश भी

सुन रहे शांत स्वप्निल वृक्ष पल्लव सभागार भी


आओ प्रिये इस शुभ अवसर पर मधुर संगीत।



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