एक कविता बस मे
एक कविता बस मे
मैं तेज़ चल रही बस पर बैठा हूं
तेज विमान सी चल रही बस के साथ
मैं तेज़ रफतार में हूं
मैं उर्ध्वाधर प्रगतीशील
मैं एक अंनत सीमाओं से परे विवेचनामय हूं।
मेरी अस्थिरता में मेरे अंदर के इलेक्ट्रॉन
सामान्यता अधिक उर्जाव्शित हैं।
एक बच्चे कि हंसमुख प्रेमातुर मुख
कितनी नूतन लग रहा है ।
मां का दुलार उसको कालजयी प्रेमों में एक है।
वह तुतलाता है लेकिन कंठ से निकले स्वर
इश्वर प्रदत्त बांसुरी सी है।
मां समझती उसके अनकहे निश्वर स्वर को भी
क्योंकि एक मां अंतर् रहित है उसके बच्चे।
