STORYMIRROR

Rekha Bora

Abstract

3  

Rekha Bora

Abstract

ज़रा सामने तो आ ओ छलिये

ज़रा सामने तो आ ओ छलिये

1 min
163

आओ आओ अवधपुर राम जी

हम कब से निहारें तोरी राह जी

कब से आँखें बिछाए राह तक रहे

अब आकर पधारो अपने धाम जी


हैं अंधेरा घना कितना छा गया

पाप दुनिया में है कितना बढ़ गया

देखे‌ दुनिया तुम्हारी ओर जी

अब आकर पधारो अपने धाम जी


महामारी को कर दो दूर जी

सबके बिगड़े ‌बना दो‌ काम जी

अपने कर्मों की हमको सजा मिली

अब आकर पधारो अपने धाम जी।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract