दर्द का दीदार
दर्द का दीदार
जब से मैंने दर्द का दीदार कर लिया
ज़िंदगी से और ज्यादा प्यार कर लिया
जंगलों की आग सी फैली ये नफरतें
दिलों ईमां को दुश्मनी ने ख़ार कर लिया
हर शहर फैलती ये ज़हर मानिंद आँधियां
इंसान ने इंसान का शिकार कर लिया
बढ़ने लगी दुश्वारियां दिखावे की होड़ में
अब खुद ही अपना जीना दुश्वार कर लिया
बदी से जोड़ा नाता इंसा ने इस क़दर
नेकी को कैसे इसने दरकिनार कर लिया
है कत्लेआम करते ज़िंदगी के चारागर
दे दवा के बदले ज़हर गुनहगार कर लिया
सब कुछ लुटा के मौत के करीब नौजवां
जब खुद को ही नशे का तलबगार कर लिया
ज़नाब पहले आप कहते थे जहाँ लोग
मतलबपरस्ती ने इन्हें अय्यार कर लिया