STORYMIRROR

Rekha Bora

Classics

2.5  

Rekha Bora

Classics

सावन

सावन

1 min
274


अब के सावन  

बरस ऐसे कि

जल थल कर दे एक

धुल जायें तेरी फुहारों में 

हर दिल के गिले-शिकवे

और वैमनस्यता


अब के सावन 

बरस ऐसे कि

सुकून मिल जाये विरहणी को

जिसके आँसू तेरे जल से मिलकर 

बहा ले जाये है उसे पिया की

यादों में..

और छुपा लेती है वो 

दिल का दर्द तेरे बहते पानी के साथ


अब के सावन

बरस ऐसे कि 

बुझ जाये प्यासी धरती की

अक्षुण्ण प्यास 

पड़ गयी है उसके 

शरीर में अनेकों दरारें 

झाँकने लगी उसमें से 

कमजोर अस्थि-मज्जायें

भर दे अंग अंग में 

इक नयी उमंग


अब के सावन 

बरस ऐसे कि 

हरी-भरी हो जाये

बाँझिन धरती की कोख

भर दे वनस्पतियों 

और धन-धान्य के भंडारण


अब के सावन 

बरस ऐसे कि 

नाचने लगे धरती पुत्र 

का मन मयूरा

परिश्रम कर दे 

उसका सफल

अब न भूखा सोये 

कोई मनुआ


अब के सावन

बरस ऐसे कि 

बह जाये तेरे साथ 

मानव मन की 

कलुषता व पैशाचिकता

और हो जाये प़ाक हर 

दिलो-दिमाग 

अब के सावन

जम के बरस...

जम के बरस...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics