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Nitu Mathur

Abstract

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Nitu Mathur

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उलझन

उलझन

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कहीं वादे जिंदगी भर के

कहीं कम उम्र की ख्वाहिशें हैं,


किसे छोड़ें किसे करें पूरा

ये दर्द में उलझे ताने बाने हैं,


आधी जी है.. मगर बहुत है बाकी

ये जिंदगी की दास्तान रंगी कभी खाकी,


अकेली थी, अकेली हूं, 

ना है किसी का दखल


चलती राह से गुफ्तगु किए

 करूं सफ़र ये मुक्कमल।


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