कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र
अचानक हवा में लहराते हुए शंखनाद गूँज उठा
जैसे कि कोई युद्धभेरी, युद्ध के ख़त्म
होने का ऐलान कर रही हो।
साथ ही साथ हवा में सरसराती
तलवारों की आहट, कहीं व्यथा से
जुड़ा रुदन, तो कहीं खून से भीगी
मिट्टी की खुशबू और कहीं कई
टुकड़े हुए प्राणहीन निर्जीव अंग
दृश्यमान हो कर अदृश्य हो जाते।
कहाँ आ गयी मैं?
पथरीला डगर, अनजाना सफ़र
उमड़ते बादलों के पीछे दौड़ते हुए
न जाने कहाँ पहुँच गयी मैं।
दूर-दूर तक पथरीला मैदान
चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है,
जैसे कि अभी-अभी कई तूफ़ान
एक साथ गुजर गये हों।
मैदान का हर पत्थर,
एक कहानी बयाँ कर रहा है।
कहीं यह डगर महाभारत की
वह युद्धभूमि तो नहीं,
जहाँ लाखों सेनाओं के साँसे
मिट्टी में मिल गई थीं?
जहाँ महान योद्धा भीष्म को
शरशय्या पर सुला दिया गया था?
यह मिट्टी वह कुरुक्षेत्र की तो नहीं
जहाँ असत्य, अन्याय, अधर्म के खिलाफ़
लड़ते-लड़ते लाखों ज़िंदगी पत्थर बन चुकी हैं?
अचानक मेरी आँखें अश्रु से भर आईं
क्या इस युद्ध ने सही मायने में इन सब पर जीत पाई है?
मेरा हृदय रोने लगा।
हे योद्धाओं, महावीरों
आप के खून से भीगी हुई ये मिट्टी की ख़ुशबू
खून से लाल हुआ ये मिट्टी का रंग
अन्याय, अधर्म के खिलाफ़ यह सत्य की लड़ाई
चाहे कुछ देर के लिए असत्य, अन्याय
अधर्म को मिटा दिया हो
मगर आज भी यह लड़ाई जारी है।
इस मैदान में पापियों के शरीर से निकली
एक-एक खून की बूँद से सैकड़ों, हज़ारों, लाखों
दुर्योधन, दुःशासन, कंस और मामा शकुनी
जैसी बुरी आत्माएँ जन्म ले चुकी हैं।
आज एक नहीं, हज़ारों द्रोपदियों का
वस्त्र हरण रोज़ हो रहा है।
कहाँ हैं, कहाँ हैं आप हे कृष्ण!
शायद आज के दौर में आपको
एक नहीं हज़ार बन कर जन्म लेना होगा।
फिर एक बार महाभारत रची जाय
यहाँ युधिष्ठिर जैसी पवित्र आत्माओं का
कोई स्थान नहीं, क्योंकि मुक्ति के नाम पर
आपने उन महान आत्माओं को
आप में समेट लिया है न...
आज ऐसे महापुरुष गिनती में रह गए हैं,
या वह भी सिर्फ नक़ाबपोश हैं।
हे महामानव,
एक बार फिर इस धरती पर
आप का आगमन अनिवार्य हो चुका है।
इस कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर गांधीजी का
अहिंसा का पाठ कहाँ तक और कब तक
लोगों में आस्था क़ायम रखेगा
ये तो समय ही बता सकता है।
मगर भैंस की खाल में शेर
छिप कर वार करे तो क्या करें?
या...असत्य अगर सत्य, अन्याय अगर न्याय का
पाठ पढ़ाने लगे तो क्या करें...?
हे गिरधारी!
वह आप ही तो थे -
जिन्होंने द्वापर युग में प्रलयंकारी तूफान में
एक उँगली में गोवर्धन पर्वत को उठा कर
मानव जाति का उद्धार किया था।
वह भी आप ही थे
जो त्रेता युग में राम अवतार धारण कर
रावण की धृष्टता से नर और वानर आदि
समग्र जातियों की रक्षा की थी।
जब-जब अन्याय प्रबल होता रहा
तब-तब आप का जन्म हुआ,
तो क्या अब भी पाप का घड़ा
भरना बाकी है प्रभु...?
या फिर आप संकोच में पड़ गए हैं
पापियों का नाश करते-करते
यह धरा पृष्ठ का ही सर्वनाश हो न जाए...
हाँ प्रभु! इस बार आप को हिंसा के बल पर नहीं
अहिंसा के बल पर लड़ना होगा।
मानव के दिल से जो आत्मा का नामोनिशान
मिट चुका है, उसे जगाना होगा।
जग से पापियों का नहीं
पाप का नाम मिटाना होगा।
क्या यह आप के लिए साध्य होगा
मेरे भगवन...?
©latatejeswar
