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लता तेजेश्वर रेणुका

Abstract

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लता तेजेश्वर रेणुका

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आज़ाद भारत

आज़ाद भारत

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हम भी थे उस स्वतंत्रता में शामिल

स्वतंत्र सेनानियों के बीच कहीं

खड़े होकर ताक रहे थे

जब झंडा फहराया गया था 


आजादी का, फूल गिरे थे आसमान से 

और जमीं भी गीली थी

स्वतंत्र सेनानियों के खून से,

लिखे थे जो आजादी के चंद लफ़्ज़


पगडंडी में बिखेर पड़े थे 

उन फूलों की तरह

जिन्हें मसल दिए थे अंग्रेजियों ने 

इज्जत, स्वतंत्र देश के नागरिकता की


खून बहे थे नल नालियों में

और पैदा हुए थे शत शत देशप्रेमी

हर एक बूँद की लहू से

सैकड़ों देशभक्त पैदा हुए


हर एक के माथे पर लिखा था 

हम हैं नागरिक देश के

जान मान लूटा देंगे और यूँ हुआ भी था 

हमारा भारत स्वतंत्र।


हर एक कण मिट्टी के लिए 

एक जान शहीद हुआ था, 

कोई आसान नहीं था

इस लड़ाई स्वतंत्रता का और


हम शामिल भी थे एक फूल की तरह

उस गीली जमीन पर जहां से

भारत की सेनाएँ गुजरे थे बंधूक ताने, 

सीने पर गोलियाँ खाते शहीद हो गिर पड़े थे 


तब मेरा तन रक्त से लाल हो गया था

लाल गुलाब की तरह

पर चुभने न दिया मैने काँटे गुलाब के,

ढक दिए थे अपने पंखुड़ियों से


जय जयकार करते हुए

अपने सेनाओं की और देश की

वही मेरी पुष्पांजली थी,

मुझे गर्व है कि मैं भी शामिल थी

एक फूल बनकर भारत की आज़ादी में।


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