कस्तूरी मेरे मन की
कस्तूरी मेरे मन की
समय की ओज से पा लिया मैंने कस्तूरी
मेरे अंदर बसी थी ढूँढ लिया मैंने कस्तूरी
ढूँढ़ी मैंने गली, चौराह, बाग औ' पगडंडियाँ
नहीं मिला वो सूर्य-किरणों में न चाँदनी में
श्वास भर कर, बंद आँखों से एहसास किया
मेरे दिल में ही पाया, मेरे मन की कस्तूरी।
सीने से लग गयी वह आँचल में लिपट गयी
हिरणी-सी बलखाती चंचल गुड़िया रानी
खुशी से छलक उठा नैन, तन-मन पुलकित
मन की आँगन में जब पा लिया मैंने कस्तूरी।