माँ मेरी ऐसी है
माँ मेरी ऐसी है
छोटी सी है दुनिया उसकी,
छोटा सा परिवार है
उससे आगे की दुनिया से न
करती वह परवाह है
दुनिया दारी नहीं जानती,
न सीखी वह चतुराई है।
माँ मेरी ऐसी है
बेटी आएगी घर,
खाना उसके पसंद का बनाना है,
बेटा कॉलेज जाएगा
ड़िब्बा भी तैयार करना है,
इसी सोच और ख्यालों में
दिन उसका ढल जाता है ।
माँ मेरी ऐसी है
उम्र हो गयी 60 की,
नहीं परवाह उसे झुर्रियों की
पुराने जोड़ों के दर्द लिए
डोलते वह चलती है,
घर के चार दीवारों में
सिमटी उसकी दुनिया है।
माँ मेरी ऐसी है
न चिंता कभी भविष्य की,
न माथे पे शिकन है
कमर हो गयी ढ़ीली पर
सोच इतनी सी ही पाली है
दूर देश में बेटा मेरा
कुछ खाया
है की नहीं है,
दो वक्त का रोटी सेकने
हाथ जलाया तो नहीं है।
माँ मेरी ऐसी है
डाँटती है जब देर रात में
काम करते देखती है
आराम लेने को कहकर
हर वक्त वह सताती है
थके हारे जब घर आती मैं,
सिर वह दबा देती है।
माँ मेरी ऐसी है
सारी थकान भूल कर वह
दौड़े पानी ले आती है।
चाँदनी सी मुस्काते ही
मरहम लगा देती है,
खुद के ही पसीने को
आँचल में छुपा लेती है।
माँ मेरी ऐसी है
यही है मेरी माँ अन्नपूर्णा
माँ लक्ष्मी भी यही है
पैरों में जन्नत इसके
यही मेरी बाबा साईं है
पादुका साईं के धोने से
पहले कर लूँ इनकी पूजा मैं
रात और दिन कर सेवा इनकी
खुद को मानू धन्य मैं।
माँ मेरी ऐसी है