राज़
राज़
मदिरा का प्याला हाथों में लिये
चाँद जरा क्या झूम गया
पैर उसका हड़बड़ा कर
कीचड़ जा कर समा गया।
चाँद पर जब दाग लगा
शर्मा के बादल में छुप गया
बादल ने जब साथ छोड़ दिया
वरुण देव से मिन्नतें बहुत की।
सागर जब चाँद को देख
हँस हँस कर फूल गया
गुस्से से नाराज़ हो कर चाँद
सूरज से दूर छुप गया।
सागर जब जब चाँद को देखे
हँसी समा न पाए
पेट है उसका फूल फूल कर
लहरें बड़ा बन जाए।
फिर
चाँद पहुँचा आकाश में
करने गंगा से मिन्नतें
उससे पहले गंगा मैया
धरती पर आ बह गई।
चाँद की हालत कौन समझे
दाग जो अंश बन कर रह गया
धरती के पल्लू में छुप कर
रात में आ कर बस गया।
जब जब सूरज सामने आता
धरती को घूंघट बनाता
चाँद में ग्रहण लग गया समझ
सूरज से दूर छुप जाता।
जब सामना सूरज से होता
पीठ उसका दिखलाता
धरती के सामने सिर झुका कर
सूरज को ढक लेता।
चाँद हमसे नाराज़ हो कर
मुँह फुला कर बैठ गया
राज़ था जो खोल दिया हमने
इसलिये हमसे रूठ गया।