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लता तेजेश्वर रेणुका

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लता तेजेश्वर रेणुका

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अंधेरा कुआँ

अंधेरा कुआँ

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वह अंधेरा कुआँ,

लाखों सिसकियाँ


आवाज़ दे रहा

हजार धड़कने लुप्त होकर,

एक अशरीर आत्मा पुकार रहा।


अंधेरा कुआँ,

जीर्ण शीर्ण शरीर

रक्त माँस की बू-

लाशें हैं भर भर के

पानी की जगह भर ली हैं साँसें।


मिट्टी की शरीर है मिल गई मिट्टी में

अंग्रेजों की लाठी का मार,

ऊपर से गोलियाँ बेशुमार

जान जाए मगर लाज़ न जाए,


वह अंधेरा कुआँ,

लाखों सिसकियाँ।

रह रह कर सुनाई दे रही है

रोती, बिलखती आवाजें

सन्नाटे में उस अंधेरे कुएँ से

पूछते हुए 


क्या अभी बंद हुई अंग्रेजों की गोलियाँ?

लूट लिए जो जान, मान,

मगर माँ, मेरी माँ

भारत की गोद में सर रख कर दे दी

हमने अपनी जान क़ुर्बान,  

अंधेरे कुएँ में।


अपनी इज़्ज़त बचाते बचाते 

महिलाएं जिन्होंने कुएँ में कूद कर जान दी थी

क्या वह अत्याचार ख़त्म हुआ है?


क्या खत्म हुये उन विदेशियों के अत्याचार

जो ज़ख्म दे-देकर छल्ली कर दिए थे

माँ धरती की सीना,

क्या भरे हैं वे जख्म के निशान?


आह आह करती धरती माता

अश्रु और रक्त है झलकता

जब मैं गुज़रती हूँ उस जमीन की टुकड़़े पर

लाखों चीखें पुकारते

आवाज़ देते


धरती माता को पूछते

हे! धरती माता!

कब होगी हमारी अशांत आत्मा शांत !


खून जो गुलाल के उड़ाए थे हमने,

बरसों पहले

क्या हुआ उसका अवसान

क्या मिला! हमारा बलिदान का प्रतिकार?


वह अंधेरा कुआँ,

लाखों सिसकियाँ


धरती माता शांत और चुप्पी सी रखी है,

एक मोम की पुतले सी,

मौन, अश्रु बन कर बहाने लगा।


जब दुश्मन आ कर घर लूटे

तो घर वाले एक हो कर उससे निबटते

मगर जब अपने ही अपनों को लूटे 

तो क्या होगा माँ का जवाब?


स्त्री के प्रति असुरक्षा, नीच भाव

बच्चों के प्रति अमानुषता

अत्याचार, बलात्कार, अभी भी जारी है,

जो पहले न था वह आज भी उतना ही है,


पहले दुश्मन लूटते थे,

और अब अपने ही अपनों को लूटते है।


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