STORYMIRROR

Shailaja Bhattad

Abstract

3  

Shailaja Bhattad

Abstract

अमीरी

अमीरी

1 min
144

दान के नाम पर फेंके जा रहे।

 माना लोगों पर तरस खा रहे।


 दिखावे की चादर ओढ़े।

 लोगों को छले जा रहे।

---------

 गम विषाद सब अमीरों के चोंचले।

 महलों के इरादे कितने खोखले।

 चंद रुपयों में खरीदकर।


 हस्ती जता रहे।

बाकी कितने अभी और ढकोसले।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract