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PRIYA SHARMA पँखुड़ी

Abstract

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PRIYA SHARMA पँखुड़ी

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पुराने मकान

पुराने मकान

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पुराने मकान के धराशायी होने से पहले 

वक्त निकाल कर सोना उसकी गोद मे तुम

जितनी खुशियों के साक्षी तुुम रहे हो

कितने ही गमोंं को दफन कियेे बैठा है वो

स्नेह से दीवारों को देना


अपनी अंगुुुलियों का स्प‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌र्श 

सालों से दबी सीलन की,

नमी महसूूस होगी तुम्हें

जर्जर छत को भी,


नजर भर देेेख लेना तुम

गवाह वो भी रही हैै,

तुम्हारी बढती उमर की

दरवाजों से अब मत टकराना तुम,

ढीले जो पड़ गये हैं

उनकी सख्ती ने ही तो,


मजबूत बनाया था तुम्हें

रसोईघर मेेंं मत जाना, 

माँँ याद आयेंगी तुम्हें

आँसुओं को अब उनका,

ममतामयी स्पर्श नही मिलेगा


सीढियों पर बैठकर, 

अपने कदमो की आहट सुुनना तुम

बचपन में ऊँचाइयों को छूना, 

उन्ही से सीखे थे तुुम

खिड़कियों को जरा खोलकर, 

ताजा हवाओं को लाना तुुम

लौटने से पहलेे एक बार फिर,

उन्हें जीवित कर देना तुम।


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