STORYMIRROR

PRIYA SHARMA पँखुड़ी

Tragedy

4  

PRIYA SHARMA पँखुड़ी

Tragedy

देश बदलने लगा है

देश बदलने लगा है

1 min
271

ख्वाहिशों के शहर में

अमावस की रातें ठहरने लगी हैं

सड़के और गलियां भी

दहशत मेें रहने लगी हैं

भय सेे परेे जो भय है

उन्मुुुुुुक्त विचरने लगा हैं

देश की शान तिरंगे का

अब रंंग उतरने लगा हैं

कड़वाहटो का बाजार भी

अब पांव पसारने लगा हैं

नदियों के इस देश में

खारा समंदर बहने लगा हैं

भाईचारा बंद किताबो में

कोई पीठ मेंं खंजर घोंप रहा हैं

कट्टरता के इस खेल में

इंसानियत का दम निकल रहा हैं

भारत माँ की संतानों का

रक्त  क्यों बहने लगा हैं

उम्मीदो से परे  अब 

देश बदलने लगा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy