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Meera Ramnivas

Abstract

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Meera Ramnivas

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वो एक मां है

वो एक मां है

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पता नहीं, 

जिंदगी उसे जी रही है। 

या वो जिंदगी को, 

जी रही है। 

वो एक माँ है, 

बच्चों के लिए ,

सब सह रही है। 

बिन पिंजरे की, 

कैद में रह रही है। 

पिंजरे में कैद, 

पंछी से कहीं ज्यादा परतंत्र,

पिंजरे में कैद पंछी से, 

कहीं ज्यादा निरीह। 

पंछी तो यदा कदा, 

चहक भी लेता है। 

मालिक से प्यार के,

दो बोल सुन भी लेता है ।

कभी कभी हाथ से,

दाना चुग लेता है।

उसे तो वह भी, 

नसीब नहीं।


उसे सिर्फ, 

हुक्म दिये जाते हैं

बीमार होने पर,

तीमारदारी के बजाय, 

ताने दिए जाते हैं ।

इंसान से

मशीन बना दी जाती है

इच्छा अनिच्छा

भुला दी जाती है

यदि हक के लिए, 

आवाज उठाती है।

घर से निकाल दी जाती है। 

अपनों से भी, 

सहानुभूति के अलावा ,

कुछ नहीं पाती है। 

चार दीवारी से बाहर जीना ,

और भी मुश्किल है। 

बच्चों को छोड़ कर जाना,

भी बामुश्किल है। 

बच्चों के लिए ,

जहर के घूंट पी लेती है ।

सब सह कर भी जी लेती है। 

बच्चे जब, माँ ! माँ !

कह कर बुलाते हैं। 

सब गम भूल जाती है ।

चलती फिरती सांसों में ही, 

जीवन ढूँढ लेती है। 

क्यों कि, 

वो एक माँ है ।।



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