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Manisha Maru

Abstract

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Manisha Maru

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काजल

काजल

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काजल जब कजरा बन जाए,

सबकी नजरों को रंगीन ,मदहोश कर जाए।


वही काजल जब तन का रंग बन जाए,

तब उसकी अवहेलना कर,

हर बार ही कोशा जाए।


बचपन ,जवानी हो या बुढ़ापे का आजाना

हर उम्र में उड़ता मजाक, 

और सुनने को मिलता ताना।


मांए तो ,

जन्म से ही श्वेत ,श्यामल दोनों रंग पे 

पल पल वारी जाए।

कभी वो नजर उतारे,

तो कभी देख निहार,

अपने जिगर के टुकड़े को खुश हो जाए।


बात आए जब जवानी की,

और किसी पे दिल आ जाए।

अपने प्रेमी प्रेमिका के श्यामल रंग के आगे,

उन्हें जन्नत के हूर भी ना सुहाये।


आए बात जब बुढ़ापे की,

तो श्वेत ,धवल

की तृष्णा ही मिट जाए,

अंतिम सांसों तक एक दूजे के रूह में समा

अटूट प्रेम का इत्र ही केवल नैनों से छिड़का जाए ।


काजल की बिसात बस इतनी सी,

दो बंद कोठियों के बीच ही अपना शहर बसाए,

बाहर निकल न किसी की अश्रु धार बन बह जाए,

ना ही किसी के गालों में लिपट पसरा जाए।


गोरी होकर राधा भी श्याम के रंग में ही रंग जाए,

रात काले अंबर पे ही तो ,

झिलमिल तारों की मधुर छाटा बिखरी जाए।


श्वेत कागज पर जब लेखनी का काला जादू चढ़ जाए,

तो मन के हर भाव मोती बनकर निखरे जाए।

क्यों काला रंग कई बार अशुभ मनाजाए?

जबकि जीवन में स्कूल की शुरुआत 

पाठशाला के ब्लैक बोर्ड से की जाए।



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