जिंदगी_के_रंग
जिंदगी_के_रंग
जिंदगी के रंग होते कई,
सुख– दुःख, बसंत–पतझड़
चक्कर लगाते सबके जीवन माही।
एक आए दूजा हर्षाए,
जीवन के ये इंद्रधनुषी रंग
हरपल बिखरे और निखरे जाएं।
काजल जब कजरा बन जाए,
सबकी नजरों को रंगीन ,मदहोश कर जाए।
वही काजल जब तन का रंग बन जाए,
तब उसकी अवहेलना कर,
हर बार ही कोसा जाए।
बचपन ,जवानी या बुढ़ापे अजाए
हर उम्र में बनता मजाक,
और सुनने को ताना मिलजाए।
मांए तो ,
जन्म से ही श्वेत ,श्यामल दोनों रंग पे
पल पल वारी जाए।
कभी वो नजर उतारे,
तो कभी देख निहार,
अपने जिगर के टुकड़े को खुश हो जाए।
बात आए जब जवानी की,
और किसी पे दिल आ जाए।
अपने प्रेमी प्रेमिका के श्यामल रंग के आगे,
उन्हें जन्नत के हूर भी ना भाये।
आए बात जब बुढ़ापे की,
तो श्वेत ,धवल की तृष्णा ही मिट जाए,
अंतिम सांसों तक एक दूजे के रूह में समा
अटूट प्रेम का इत्र ही केवल नैनों से छिड़का जाए ।
काजल की बिसात बस इतनी सी,
दो बंद कोठियों के बीच ही अपना शहर बसाए,
ना बाहर निकल, ना किसी की अश्रु धार बन बह जाए,
ना ही किसी के गालों में शालों सा लिपट पसरा जाए।
गोरी होकर भी राधा,
श्याम के रंग में पल पल रंग जाए,
रात काले अंबर पे ही तो ,
झिलमिल तारों की मधुर छाटा बिखरी जाए।
श्वेत कागज पर ,जब लेखनी का काला जादू चढ़ जाए,
तो मन के हर भाव मोती बनकर निखरे निखरे जाए।
फिर क्यों काला रंग कई बार अशुभ बनजाए....
जबकि जीवन में स्कूल की शुरुआत
पाठशाला के ब्लैक बोर्ड से ही की जाए।