मनी प्लांट
मनी प्लांट
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गमले और बोतलों में लगा
मनी प्लांट का पौधा मुझे भीतर
ही भीतर कचोट रहा।
जब भी बेल बढ़ती मेरी
हर कोई चोरी छिपे उसे तोड़ रहा।
जाने कैसी शत्रुता है सबकी मुझसे
मैं आज तक समझ ना पाई,
बस उलझनों के धागों सा
चारों ओर मन मेरा है टूट कर बिखर रहा।
पहले मुझे मेरे अस्तित्व से हैं मिटाते,
फिर मेरे वजूद को कभी गमले में,
तो कभी बोतलों में लगा
हर कोई अपना घर हे सजा रहा।
मेरी बेल की हर एक गांठ से
रिसता हुआ दर्द का आंसू ,
अपने रूदन से मेरे अंतर्मन को
अब तो तड़पा के भिगो रहा।