अलादीन का चिराग
अलादीन का चिराग
आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ एक कहानी।
सुनाती थी बचपन में मुझको मेरी नानी।।
अलादीन का एक चिराग,
लग गया जो बच्चों के हाथ,
दिखाता खूब कमाल,
हर हुक्म का पालन होता,
धरती और आकाश की
जब चाहें वो सैर करवाता,
इस बीच में आ जाता
अगर फलों का बागान
खूब मीठे ताजे फलों का
फिर वो रसपान भी करवाता।
हर एक का ख्याल रखता
आंच ना किसी पर आने देता
लेकिन बुरे कर्मों से होता इनकार
मदद की राह दिखाता हर बार
तो मेरे प्यारे राज दुलारे बच्चों
अपने जीवन के बन के अलादीन
बन जाओ औरों की खुशियों के चिराग
सब नहीं तो कुछ चेहरों पर ही सही
होंठों पर खिला दो तुम मीठी सी मुस्कान।