पुलवामा: दर्द और संकल्प
पुलवामा: दर्द और संकल्प
मैया सुन मैं तुझसे अपने
मन की कहने आया हूँ
आज नहीँ तन बाकी मेरा
हवा मैं बन के आया हूँ।
जान गँवाने का ग़म मुझको
मैया किंचित मात्र नहीं
लेकिन दुख बस इतना है
क्या लड़ने का मैं पात्र नहीं।
बिन हथियार उठाए मरने
का दुख क्या है दिखलाना
मेरे मन की व्यथा को मैया
देश में सबको बतलाना।
पुलवामा में अगर वो दुश्मन
वार सामने से करता
सच कहता हूं टुकड़े उसके
इससे ज्यादा मैं करता।
लेकिन कायर घात लगा कर
चोरी चोरी आया था
जब तक हमको पता चला तो
धुआँ घनेरा छाया था।
लेकिन दिल मत छोटा करना
अगले जन्म फिर जाऊँगा
और लिपट कर शान से अपने
ध्वज में फिर से आऊंगा।