मेरा घर
मेरा घर
मैं जिनका होने की ख़ातिर सभी कुछ छोड़ आई हूँ
उन्हीं के वास्ते अब तक भी मैं बेटी पराई हूँ
मुझे तो जन्मदाता ने मेरे बोला पराया धन
परायेपन की बीमारी से बचपन की सताई हूँ
इसे ससुराल कहते हैं उसे पीहर कहा जाए
समझ आता नहीं मुझको कि किसको घर कहा जाए
बहू को मान कर बेटी वो घर में ले के आये थे
दिखा देते हैं पर पल में कि मैं उनकी न जाई हूँ
न जाने क्यों अभी तक भी मैं तो बेटी पराई हूँ
कोई है वंश को अपने चलाने की लिए आशा
किसी को घर के सारे काम करवाने की है आशा
मैं हँस कर मान कर अपना यहाँ हर काम करती हूं
कभी ना ये कहा क्या नौकरानी मैं लगाई हूँ
मगर फिर भी सभी के वास्ते मैं ही पराई हूँ
मुझे लड़ने-झगड़ने के लिए भाई सा हो देवर
दिखा पाऊँ ननद को मैं बड़ी बहनों के से तेवर
दवा ना लें ससुर जी सास जी टाइम से अपनी तो
लगे प्यारी उन्हें वो डाँट जो लाडो-लडाई हूँ
मुझे बिल्कुल न होगा भान कहीं पर मैं पराई हूँ।