Ajay Gupta

Abstract Drama

2.5  

Ajay Gupta

Abstract Drama

हिम्मत का मुखौटा

हिम्मत का मुखौटा

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किसने कहा

कि जज़्ब कर जाते हैं ग़म

और दम खोते नहीं

ग़लतफ़हमी है दुनिया को

कि मर्द हैं रोते नहीं


किसी प्रियजन को खोने का

या हानि का व्यापार में

घर में आई विपदाएं

या टूटती मर्यादाएँ संसार में

सब विचलित करती हैं

आँखें ही तो भिगोते नहीं

ग़लतफ़हमी है दुनिया को

कि मर्द हैं रोते नहीं


हम ने आपा खो दिया

तो ढाढस कौन बंधायेगा

जिस पर आगे बढ़ जाना है

रास्ता कौन दिखायेगा

ज़िन्दगी के खेत मे हम

निराशाएँ बोते नहीं

ग़लतफ़हमी है दुनिया को

कि मर्द हैं रोते नहीं


डर हमें भी लगता है

दुख होता है हमको भी

लेकिन सबकी हिम्मत आखिर

में बनना है हमको ही

सच तो है कि पहने हमने

हिम्मत भरे मुखौटे हैं

हम कहते हैं मानो दुनिया

मर्द है तो क्या? रोते हैं



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