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Ajay Gupta

Abstract

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Ajay Gupta

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चाय का कप

चाय का कप

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थाम लेती हो तुम

अपने कोमल हाथों की

मखमली हथेली से...

और लिपटा कर

अपनी नर्म उंगलियों के

रुई से गुदगुदे पोरों से।


एहसास जगाती हो अपना

फूँक कर हल्के से।

फिर धीरे से लगा लेती हो

अपने होंठों से,

एक बार, दो बार, बार-बार।

हायय....

चाय का कप क्यों नहीं हूँ मैं।


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