STORYMIRROR

Ajay Gupta

Abstract

4  

Ajay Gupta

Abstract

एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल

1 min
247

रब के हाथों की हैं हम कठपुतलियाँ

नाचती हैं उसके दम कठपुतलियाँ


क्या नहीं करती बताओ मुझ को ये

बोलिये हैं किस से कम कठपुतलियाँ


नाचकर फिर बाँध थैले में चली

दर्शकों के हाल-ग़म कठपुतलियाँ


आज कुछ हैं कल न जाने क्या बनें

कितने लेती हैं जनम कठपुतलियाँ


खोलती हैं पोल सबकी सबके बीच

ढा रहीं कैसा सितम कठपुतलियाँ


भावहीना ख़ुद हैं पर जादू है ये

आँखें कर देती हैं नम कठपुतलियाँ


थाम ली डोरी सिपहसालार ने

और सियासत की हैं हम कठपुतलियाँ


छोटा सा आदेश ऊपर से मिले

और बन जाती हैं यम कठपुतलियाँ


अपने पर इनका कोई अंकुश नहीं

खींचतीं हैं रम-चिलम कठपुतलियाँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract