खुशियों के कुछ पल
खुशियों के कुछ पल
तन्हाई में खुद से ही बातें कर
ख़ुद को हँसा लेती हूँ
शीशे में अपना अक्स देख
थोड़ा कुछ गुनगुना लेती हूँ
बस कुछ इस तरह, अपनी जिन्दगी से
खुद के लिए खुशियों के कुछ पल चुरा लेती हूँ।
घर को सजाते, संवारते समय
एक कोने में नीरस से पड़े
शृंगार के समान से, फिर से
खुद को थोड़ा सजा लेती हूँ
धूल खाते कंगनों को पोंछ
थोड़ा सा का लेती हूँ
बस कुछ इस तरह अपनी जिन्दगी से
खुद के लिए खुशियों के पल चुरा लेती हूँ
पूजा की घंटियों के साथ
भूले बिसरे सपनों का तार
एक बार फिर गिटार सा बजा लेती हूँ।
उबलते हुए दूध को देखकर,
जिन्दगी के सारे रिश्ते नातों के
तानो बानो को मन ही मन
थोड़ा खौला लेती हूँ
फिर प्रेशर कुकर की सीटियों से
निकलती नमी देख
पलकों के कोरों को
थोड़ा झिलमिला लेती हूँ
तरह तरह के व्यंजन की फैली खुशबु
की उड़ती भापों के साथ
दिल का हर गुबार धुएं सा उड़ा लेती हूँ
बस कुछ इस तरह, अपनी जिन्दगी से
खुद के लिए खुशियों के कुछ पल चुरा लेती हूँ।
नन्हे कंधों पर लदे बस्तों का बोझ देख
अपने अरमान का बोझ बड़ी चालाकी से
सबकी नजरों से छुपा लेती हूँ
सूखते हुए कपड़ों को उठाने के साथ साथ
अपने अल्हड़पन को भी
धीरे धीरे वहीं सूखा लेती हूँ
सखि, सहेलियों संग मस्तमौली बन कभी
मैकडोनल्ड और मॉल के चक्कर लगा लेती हूँ
बस कुछ इसी तरह अपनी जिन्दगी से
खुद के लिए खुशियों के कुछ पल चुरा लेती हूँ
राशन, सब्जी की दुकानों पर
सामान तौलवाते समय
अपनी अहमियत भी तौल लेती हूँ
'चमक दमक में उलझ सुलझ
सिक्कों की खनखनाहट का हिसाब
अपनी डायरी से बोल लेती हूँ
ऑफिस का टारगेट पूरा करते करते
खुद के लाइफ का क्या टारगेट था
ये याद आते ही, नम सी आँखों से
थोड़ा खिलखिला लेती हूँ
कभी कभी पिया को
बड़े प्यार से गल बाहें डाल
सुबह की चाय बनाने के लिए मना लेती हूँ
बस कुछ इस तरह अपनी जिन्दगी से
खुद के लिए खुशियों के कुछ पल चुरा लेती हूँ।
जब इस दुनियादारी के दलदल में फंस
हो जाते हैं कभी बहुत बेबस हालात
तो मन के तूफानों को, शब्दों का बांध दे
कभी कहानी, कभी कविता, कभी व्यंग्य,
कभी शायरी तो कभी गजल के रूप में
अपने होंठों पर सजा लेती हूँ
बस कुछ इस तरह से अपनी जिन्दगी से
'खुद के लिए खुशियों के कुछ पल चुरा लेती हूँ ।