छूटा मोह पाश
छूटा मोह पाश
जिसके बॉंधा था मैंने
अपनी इन कजरारी अलकों में,
वह छोड़ मुझे दूर चला गया
और मुझको मेरा जागरण दे गया ,
जिसमें मेरा कल्याण छिपा था।
लगता है जड़वत् हो गई थी।
नारी को इस देश ने
देवी कर के जाना है ,
जिसको कोई अधिकार नहीं
उसको घर की रानी माना है,
तुम ऐसा आदर मत लेना
जो चहारदीवारी में क़ैद कर दे।
ज्ञान के सारे रास्ते बंद कर दे
और हर तरह से मजबूर कर दे ।
ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी
वीणावादिनी वरदायिनी है,
पर कितना आश्चर्य है कि
नारी शक्ति ही उपेक्षिता हुई,
अब फिर नया विहान हुआ है
सदियों की नींद से उन्मेष हुआ है।
