गज़ल
गज़ल
हमसफर के साथ जीवन में बहारें आ रहीं।
मुश्किलों के दौर में दुख की घटाएं भा रहीं।।
प्यार की पीड़ा सही औ फिर अधूरे जो रहे,
आस में ये प्रीत उनकी जीत नगमें गा रहीं।।
जिंदगी की भीड़ में साथी मिले जो प्यार दे,
प्यार पाकर प्यार से फिर नफरतें भी जा रहीं।।
वासना की दौड़ अंधी डस रही रिश्ते सभी ,
पाक मन की भावना नजदीक सबको ला रहीं।
"पूर्णिमा" की आरजू ये साथ जन्मो तक रहे,
गुल नए गुलशन खिले औ' रोशनी चहूँ छा रहीं।।