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praveen ohdar

Romance

4  

praveen ohdar

Romance

आया बसंत

आया बसंत

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आया बसंत , आया बसंत 

वन उपवन में छाया बसंत

कलियों में , हंसते फूलों में

छिप छिप कर मुुुसकाया बसंत।।


लद गई बौर से डाल डाल

पंंछी गाते है नई ताल 

है हवा रही खुुशियाँ उछाल

सबके मन को भाया बसंत।।


फूलों से गूंथे प्रकृति हार

करती है धरती का सृंगार

तृण तृण में छाई है बहार 

कण कण में लहराया बसंत।।


सबकी आंखों में नए रंग

मन मे सबके नूतन उमंग

भर रहा जोश से अंग अंग

क्या नए रंग लाया बसंत ।।


आया बसंत , आया बसंत

वन उपवन में छाया बसंत।।



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