तुम्हारी बातें
तुम्हारी बातें
माशूका की बातें भी कविताओं सी हैं,
कुछ समझ आएं, कुछ नहीं भी,
कभी चिनार सी, कभी झेलम सी हैं,
पर, उसकी हर-एक बात रेशम सी है।
तुलसी की बतियाँ अपने पहलू में बैठे दीये से,
कुछ सरगोशियों सी, कुछ खामोशियों सी,
बोलती बस आँखों से है वो,
आँखें कभी चहकती सी, कभी नम सी हैं,
पर, उसकी हर-एक बात रेशम सी है।
ये क्या चाँद उतर आयी है तालाब में,
या कि, चूम लिया है तालाब ने जाकर चाँद को,
चाँद कि बोलियां बस एह्शाशों घुली हैं,
एह्शाशें कभी अमावस, कभी पूनम सी हैं,
पर, उसकी हर-एक बात रेशम सी है।
छोटी-छोटी बातों पे उसकी वो नोक-झोंक,
और, बड़ी से बड़ी बातों पर,
बस सीने से लगकर मुस्कुराते रहना,
मुस्कुराहटें कभी खुशबू, कभी सरगम सी हैं,
पर, उसकी हर-एक बात रेशम सी है।
माशूका की बातें भी कविताओं सी हैं,
कुछ समझ आएं, कुछ नहीं भी,
कभी चिनार सी, कभी झेलम सी हैं,
पर, उसकी हर-एक बात रेशम सी है।

