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Dr Jogender Singh(jogi)

Romance

4.7  

Dr Jogender Singh(jogi)

Romance

तुम आ जाओ

तुम आ जाओ

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आसमान के आँगन में, एक बागीचा बनाया !

उसे, बादलों से मैंने खूब सजाया !

मैं हीर बन ! तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ !

नित नया श्रृंगार करती हूँ !

शरीर के पार, एक धार जोड़ती !

दुनयावी बंधनो को पीछे छोड़ती. 

तुम भी रूह बन आ जाओ !


मैं गुज़र जाउंगी पार तुम्हारे, 

तुम, मेरे आर -पार हो जाना !

हाथ पकड़ लेना, मेरा कसकर !

सब बंधनो को तार -तार कर देना !


मैं काली, ना तुम गोरे, 

हर पहचान , खूंटी पर टाँग !

तुम ही मेरी , पहचान हो जाना!


बादलों का एक पर्दा,  झीना सा टाँग लिया !

लाल रंग भी, इंद्रधनुष से मांग लिया !

इक आरज़ू बाकी, दुल्हन बनने की !

छोटा सा यह काम कर देना, 

कि, तू मेरी मांग भर देना !


कुछ सपने  रख छोड़ें हैं,

बादल की अलमारी में !

सितारों को भी तोड़ लिया !

बस !तुम आ जाओ, प्रिय !

मैंने सब कुछ जोड़ लिया है !



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