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Dr Jogender Singh(jogi)

Romance

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Dr Jogender Singh(jogi)

Romance

मुख़र ख़ामोशी

मुख़र ख़ामोशी

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ख़ामोश हो गयी हूँ !

कि तुम सा सुनने वाला अब नहीं

पलकों की हरकत से दाद देना,

रोकना आँख के इशारे से


बेपरवाही से हँस देना, हर बात पर मेरी

नहीं भर सकता कोई भी,जगह तेरी

सन्नाटे में अपने, तुझे पा लेना चाहती हूँ


आ जाते हो चुपके से,देख अकेला मुझे अब भी

देख हालत मेरी हँस देना, फिर देना दिलासा

तेरे संग फिर से खिलखिलाना चाहती हूँ

चुपचाप बैठ तुझे, सुनना चाहती हूँ

कुछ अपनी सुनाना चाहती हूँ


मुख़र हो गयी हूँ,चुप हो कर

सब पा लिया,तुझे खो कर

शब्दों के ख़ज़ाने से भर ली है तिजोरी

यह ख़ज़ाना तुझ पर लुटाना चाहती हूँ


खुला छोड़ रखा है दरवाज़ा

खिड़कियाँ भी खोल रखी हैं

चाँद को देख, खुली खिड़की से,

तेरा चेहरा बनाना चाहती हूँ

कुछ पल संग तेरे,बिताना चाहती हूँ


जा कर भी, न जा सके दूर तुम

पल में आ जाते हो,फिर न जाने के लिए

शरारत भरी मुस्कान प्यारी सी

 फिर से तेरे होंठों पर लाना चाहती हूँ 

खो कर पा लिया तुझ को,

सब को बताना चाहती हूँ,


 मैं ख़ामोश हो गयी हूँ, सिर्फ़ दुनिया के लिये

तुम्हें हर बात, हर रोज़ बताना चाहती हूँ।


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