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दयाल शरण

Romance

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दयाल शरण

Romance

वाबस्ता

वाबस्ता

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लिखते-लिखते हसरतें

कुछ इतनी वाबस्ता हुईं।

दूरी मीलों की भले हो

मन पे तुम काबिज रहीं।

काफिये में बांधकर

लिखने जो बैठा इक गज़ल।

लाख सोचा ना लिखूं

पर तुम्हारी मौजूदगी कायम रही।

एक बित्ते भर की ख्वाहिश

एक बीते पल का रंज

कोशिशें तो लाख कर लीं

पर हमारी दोस्ती कायम रही।

लाख सोचा ना लिखूं

पर तुम्हारी मौजूदगी कायम रही।

दूरी मीलों की भले हो

मन पे तुम काबिज रहीं।


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