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दयाल शरण

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दयाल शरण

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एहतियात

एहतियात

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कितना आसान है

मिटाकर लिखना

उतना मुश्किल है

इक दफा लिखना


कांच से रिश्तों हैं

इक पल में दरक जाते हैं

कदम कदम पे कांटे हैं

संभल कर चलना


पकड़ के हांथ जो चलते हैं

तमाम लोग जल जाते हैं

इस मुकाम से मुश्किल है

सब को अपना कहते चलना


हम जो हंसते हैं 

तो हमें कमजोर समझ लेते हैं

जनाब गुस्सा भी कयामत है

जरा संभल कर चलना


कदम कदम पे हैं

कांटे संभल कर चलना

कांच से रिश्तों हैं

इक पल में दरक जाते हैं।


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