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Sheel Nigam

Romance

4  

Sheel Nigam

Romance

प्रेम समर्पण

प्रेम समर्पण

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आशाओं के दर्पण में हसरतों का स्नेह भरा तर्पण,

कामिनी काया के कम्पन में थिरकता प्रेम-समर्पण.

कंचन-कोमल आत्मा में बसा आत्मविभोर सा मन,

बंद कमल में ज्यों आसक्त भ्रमर का प्रेम भरा तन.

आँखों में बसा समंदर का ज्वार,पलकों में थिरकन,

पलकों की चिलमन से झाँके असुअन की तड़पन.

पिय आलिंगन से बाँध, छोड़ गए अधूरा सा तन, 

घूँघट में सिंदूरी कपोल दमकते,चुम्बन की सिहरन.

कंगन,चूड़ी चमक रही,बंद सी हुई दिल की धड़कन,

तरस-तरस, बरस-बरस कर राह तकें थके चितवन.

आशाओं के दर्पण में हसरतों का स्नेह भरा तर्पण,

कामिनी काया के कम्पन में थिरकता प्रेम-समर्पण.



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