प्यार और नफ़रत
प्यार और नफ़रत
प्यार और नफ़रत के बीच है,
एक पारदर्शी सी दीवार.....
जहाँ से नफ़रत सदा दिखती है नफ़रत,
और प्यार बस दिखता है प्यार.
प्यार में बसा है एक इकरार...
नफ़रत में इंकार ही इंकार.
इस बात का इकरार न जाने
कब करेगा यह संसार?
कि नफ़रत से करेगा इंकार और...
प्यार से बस प्यार ही प्यार.
दूर गगन में क्षितिज के उस पार,
जहाँ मिलते हैं धरती और आकाश,
गले लगते है धरती और आकाश
एक दूसरे से आपस में.
बस उतनी ही दूरी है,
नफ़रत और प्यार की आपस में,
फिर क्यों नहीं लगते गले...
इस धरती के लोग आपस में?
नहीं मिटाते दूरियाँ नफ़रत
और प्यार की आपस में.
इस धरती के लोग अपने -अपने दिलों में
बसा लें अगर प्यार का भरा-पूरा सा संसार.
गले से लगा लें एक- दूसरे को जैसे,
मिले क्षितिज पर धरती और आकाश.
मिट जायेगा धरती से नफ़रत का संसार.
टूट जाएगी प्यार और नफ़रत के
बीच की पारदर्शी सी दीवार…
प्यार से मिलेगी नफ़रत सबके गले.
और बस जायेगा ' प्यार का संसार'…