अनछुआ प्यार
अनछुआ प्यार
अनछुआ प्यार
एक बार बरसों पहले
वो खड़ी थी मेरे आँगन में
अनछुई सी.
नज़रें मिलीं
दिल धड़का
चाहा छू लूँ उसे बस
एक बार...
मेरी रुह भटकने लगी उसके आस पास
दिल की बात न समझी उसने
चली गयी मुझसे बहुत दूर,
किसी अनजानी दुनिया में
पर उसकी रहस्यमयी आँखें
बुलाती रहीं मुझे बार-बार अपने पास
उसे छू पाने की आस लिये मन में
खोजता रहा
बरसों अपने आस- पास
ओझल थी मेरी नज़रों से वह
न जाने किसके पास?
आज अचानक महक उठी
तुलसी मेरे आँगन की.
खड़ी थी वह फिर से
मेरे आँगन में, तुलसी के पास
माँग में थी सिन्दूर की लाली नयनों में थी
मदभरी प्यास.
भटकने लगी मेरी रूह फिर से
उसके आस पास.
छूने को हाथ बढ़ाया मैंने
सिन्दूरी सीमा-रेखा थी उसके आस पास.
फिर भी उसकी रहस्यमयी आँखें
बुलाती रहीं मुझे अपने पास.
अनछुई ही छोड़ उसे
मेरी रुह आ गयी मेरे पास.
अब नहीं दिखती वो मेरे आँगन में
उसे न छू पाने का अभी भी
मेरे मन में है एहसास
पर मन में है विश्वास
वो सुखी है सात समुंदर पार
अपने साजन के पास.